Wednesday, June 17, 2009

मानसिक चिकित्सा है श्रद्धा और सबूरी

श्रीसाईं के दिव्य संदेशो में श्रद्धा और सबूरी अपना विशेष स्थान रखते हैं. आजतक बहुत से ज्ञानीजनों ने श्रद्धा-सबूरी को कई विभिन्न दृष्टियों से प्रस्तुत किया है. मेरे विचार में सभी का कहना सही भी है और एक विचार मेरे मन में भी उठता है की वास्तव में बाबा का श्रद्धा-सबूरी का दिव्य सन्देश एक मानसिक चिकित्सा या कहें की मनोचिकित्सा का एक स्वरुप है.

बाबा के पास पहुँचने वाले ज़्यादातर लोग अपनी ज़िन्दगी और ज़िन्दगी में हो रही मुश्किलों से परेशान होते हैं. बाबा से हर कोई आशा लेकर पहुंचता है की बाबा उसकी ज़िन्दगी में सब कुछ अच्छा कर देंगे. जिस प्रकार कोई परेशान और दुखी व्यक्ति ज्योतिषी के पास पहुंचता है और ज्योतिषी उसे कोई नग पहनने की सलाह देता है. ये नग उस व्यक्ति के जीवन में आशा और विश्वास का संचार कर देता है. प्रसिद्द ज्योतिषाचार्य प्रोफेसर दयानंद के अनुसार "अधिकतर रोग चिकित्सा से नहीं बल्कि उस चिकित्सा में विश्वास से अच्छे होते हैं और यही ज्योतिष के साथ होता है. हर किसी की ज़िन्दगी में परेशानी और दुःख का एक नियत समय होता है. एक समय के बाद रोग ये परेशानिया और दुःख खुद-ब-खुद दूर हो जाते हैं मगर इस सफ़र को तय करने में ज्योतिषीय उपाय और नग बहुत सहारा देते हैं. नग पहन कर व्यक्ति सदा स्मरण रखता है की ये नग उसे उजाले की ओर ले जा रहा है." ठीक इसी प्रकार श्रीसाईं का कहा श्रद्धा-सबूरी का मन्त्र भी निराशा से आशा और अँधेरे से उजाले की तरफ एक यात्रा है.

बाबा ने कहा "श्रद्धा रख सब्र से काम ले अल्लाह भला करेगा." ये विशवास और आश्वासन हमेशा से भक्तो के लिए एक उजाले की किरण बनता रहा है. धुपखेडा गाँव के चाँद पाटिल से लेकर आज तक जिसने भी अपने मन में ये श्रीसाईं के इन दो शब्दों को बसा लिया उसका पूरी दुनिया तो क्या स्वयं प्रारब्ध या कहें की 'होनी' भी कुछ नहीं बिगाड़ सकती. सिर्फ एक अटल विश्वाश और अडिग यकीन आपको सारी मुसीबतों और तकलीफों के पार ले जा सकता है.

बहुत से भक्तो को बाबा ले श्रद्धा-सबूरी का मतलब आज भी स्पष्ट नहीं है. वास्तव में बाबा ने कहा था की अपने ईष्ट, अपने गुरु, अपने मालिक पर श्रद्धा रखो. ये विश्वास रखो की भवसागर को पार अगर कोई करा सकता है तो वो आपका ईष्ट, गुरु, और मालिक है. अपने मालिक की बातों को ध्यान से सुनो और उनका अक्षरक्ष पालन करो. बाबा को पता था की केवल किसी पर विश्वास रखना हो काफी नहीं है. विश्वास की डूबती-उतरती नाव का कोई भरोसा नहीं है इसीलिए बाबा ने इस पर सबूरी का लंगर डाल दिया था. किसी पर विश्वास करना है और इस हद तक करना है की कोई उस विश्वास को डिगा ना सके चाहे कितने ही साल और जनम लगें. जैसा की पहले हमने बताया दुःख दूर होना है और होगा मगर उस समय तक पहुँचने के लिए एक सहारा चाहिए और वो सहारा है श्रद्धा और सबूरी.