Thursday, February 26, 2009

मैं साईबाबा नहीं हूँ

ॐ साईं राम, जब से मुझे साईबाबा सीरियल करने का सौभाग्य मिला है मेरी ज़िन्दगी में बाबा मेरे साथ-साथ चल रहे हैं ऐसा लगता है। मेरे हर फैसले में बाबा का आशीर्वाद शामिल है ऐसा मैं समझता हूँ। बाबा के भाव को अपने दामन में समेटना किसी के लिए भी आसान नहीं है। मैं तो प्रार्थना करता हूँ बाबा से और महाराष्ट्र के उन तमाम रंगमंचिये नाट्यकारो से, जो बाबा के शरीर छोड़ने के बाद से ही बाबा का अभिनय करते आ रहे हैं, की मुझे अपना आशीर्वाद और प्रेम दें जिससे मैं इस पावन और दुरूह कार्य को सहजता से कर सकूं। आज भी शूटिंग शुरू करते समय मन में सबसे पहले बाबा का नाम आता है की बाबा ये तुम हो जो दुनिया को टीवी पर दिखाई दे रहे हो। मुकुल नाग तो तुम्हारा चोला पहनने के बाद नेपथ्य में चला जाता है। ये बोलना, चलना, हाव-भाव, हँसना और सबका मालिक एक कहना सब तुम ही कर रहे हो और भक्तो को मुकुल नाग नहीं तुम यानि साईबाबा दिखाई दे रहे हो। बाबा ने इस प्रार्थना का उत्तर भी मुझे बहुत सुंदर तरीके से दिया। अपनी सभी लीलाओ की तरह जो वो पिछले लगभग 150 सालो से कभी शरीर रूप में और कभी समाधि के बाद दिखाते आ रहे हैं बाबा ने श्री जे पी शिशोदिया जी से मिलवाया और सन 2007 में मैंने शिर्डी साईं दरबार सपनावत में पहली बार बाबा के रूप में बाबा के उपस्थित भक्तो को बाबा की शिक्षाओ के बारे में बताया।

2007 की उस पवित्र शाम के बाद से बाबा ने मेरे चारो तरफ़ कसा अपना बाहों का शिकंजा और मज़बूत कर दिया। पहले तो शूटिंग के बाद कभी-कभी बाबा का विस्मरण को भी जाता था मगर अब तो जब शूटिंग नहीं होती तब कहीं न कहीं, कोई ना कोई मुझे मुझे बाबा के रूप में 'संदेश प्रचार' के लिए बुलावा दे ही देता है। कभी दिल्ली तो कभी लखनऊ, कभी इंदौर और कभी फगवाडा। बाबा को जहाँ भी अपनी उपस्थिति देनी होती है वो मेरे सर पर अपना हाथ रखते हैं और मुझे वहां जाने का सौभाग्य मिलता है। बाबा का रूप धारण करने के बाद मैं सिर्फ़ बाबा के ही बारे में सोचता हूँ। मेरी कोशिश होती है की बाबा के संदेशो को समय के साथ जोड़कर तमाम उपस्थित साईं भक्तो को कोई ऐसा संदेश दूँ की बाबा मुझसे खुश हों। मुझे परेशानी सिर्फ़ एक ही बात से होती है की बाबा का रूप धारण करने के बाद साईं के भक्त मेरे पैर छूते हैं और मुझे बाबा मानते हैं। मेरा मानना है की बाबा एक ही है। वो सबका मालिक भी है मित्र भी। बाबा ना तो कोई बन सका है और ना ही कोई बनेगा। वैसे अपनी जगह सभी संतो का एक विशेष स्थान है और मानव समाज को एक अच्छा समाज बनाने में सभी प्रयासरत हैं।

मैं तो सिर्फ़ यही निवेदन करना चाहूँगा की बाबा के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लेना ही सबसे श्रेयस्कर है। मुकुल नाग तो आपको सिर्फ़ एक दोस्त और भाई की तरह दुआ दे सकता है मगर इस दुआ को ज़िन्दगी में बदलने की ताक़त सिर्फ़ और सिर्फ़ अनंतकोटी ब्रह्माण्डनायक राजाधिराज योगिराज परब्रह्म श्रीसच्चिदानंद समर्थ सतगुरु साईनाथ महाराज में ही है। आप सबको बाबा खुशी, सामर्थ्य और शान्ति दें यही बाबा से प्रार्थना है। -जय साईंराम

Tuesday, February 24, 2009

बाय बाय मनमाड

श्री साईं का आशीर्वाद जिसपर होता है वो कुछ ना होकर भी सबकुछ हो जाता है। श्री साईं की लीलास्थली शिर्डी गाव से सिर्फ़ सोलह किलोमीटर दूर होने के बावजूद कोपरगाव रेलवे स्टेशन की जगह श्री साईं तक पहुँचने के लिए साईंभक्तो ने 108 सालो तक शिर्डी से 65 किलोमीटर दूर स्थित मनमाड रेलवे स्टेशन का इस्तेमाल किया। मनमाड जिसे कोई जानता भी ना था और वहां कोई बहुत पुन्यवान संत भी नहीं गया। यहाँ तक की सर्वत्र में व्याप्त श्री साईनाथ स्वयं भी कभी मनमाड रेलवे स्टेशन गए हों ऐसा मैंने तो नहीं पढ़ा।
आप सोच रहे होंगे की आज अचानक मुझे मनमाड रेलवे स्टेशन क्यूँ याद आ रहा है। इसकी वजह यही है की मनमाड अब सिर्फ़ यादो में रह जाने वाला है। शिर्डी का अपना रेलवे स्टेशन अब बनकर तैयार है और इस महीने के आख़िर तक साईंनगर शिर्डी नाम के इस रेलवे स्टेशन का शुभारम्भ होने की उम्मीद है। सभी साईं भक्त अब सीधे शिर्डी रेलवे स्टेशन पर आने का सपना देख रहे हैं। अपनी शिर्डी यात्रा में मुझे सौभाग्य मिला की मैं श्री साईं के सबसे नज़दीक पहुँचने वाली ट्रेन के इस स्टेशन को देखू। सभी साईं भक्तो के लिए मैं इस रेलवे स्टेशन का विडियो अपने ब्लॉग पर दे रहा हूँ।




सभी साईं भक्तो की तमन्ना अब इस रेलवे स्टेशन के शुरू होने बाद पूरी हो जायेगी मगर एक दिन शायद मनमाड स्टेशन को सब भूल जायेंगे।


मनमाड स्टेशन ने 108 सालो तक साईं भक्तो की सेवा की है। मनमाड ने देखा है बाबा के बहुत से वचनों को सत्य होते हुए। इनमे से एक वचन था की 'एक दिन मेरे भक्त यहाँ चीटियों की भाँती आयंगे।' मनमाड ने देखा की जब भीड़ बहुत ज्यादा होती है तब कैसे साईं भक्त एक दूसरे का हाथ थाम कर पुल की सीढिया चढ़ते हैं। मनमाड ने देखा है की स्टेशन मास्टर के माथे पर कैसे पसीना आता है जब हजारो की भीड़ को प्लेटफार्म पर नियंत्रित करना होता है। मनमाड देखा है कैसे ऑटो और टैक्सी वाले यहाँ रुकने वाली हर एक ट्रेन को आशा की नज़र से देखते हैं और ग्राहक मिलने के बाद साईबाबा को धन्यवाद करते हैं। मनमाड ने देखा है कैसे लोग यहाँ गाड़ी का टाइम होने से दो-दो घंटे पहले आते हैं और स्टेशन के सामने वाले ढाबो में नाश्ता करते हैं। मनमाड ने देखा है की यहाँ से अपने शहर को जाने वाले कितनी मायूसी से इस स्टेशन को देखते हैं और साईं से प्रार्थना करते हैं की बाबा हमे फिर इस स्टेशन पर लाना क्यूंकि यही तो रास्ता है तुम्हारी शिर्डी तक पहुँचने का। मनमाड ने देखा है कैसे यहाँ से गुजरने वाली गाडियों से लोग उतरते हैं और स्टेशन के प्लेटफार्म को छूकर बाबा से आशीर्वाद मांगते हैं की अगली बार हमारी यात्रा बस यहीं तक हो। मनमाड स्टेशन, जो 108 साल बाद अब लगभग खाली रहा करेगा। जिस मनमाड स्टेशन पर उतर कर लोग शिर्डी की यात्रा शुरू करते थे अब उसी मनमाड पर गाड़ी रुकने को वक़्त की बर्बादी कहा करेंगे। मनमाड स्थान साईं लीला में सदा के लिए अमर हो जायेगा मगर शायद साईं भक्त इस स्टेशन को अब भूल जायेंगे।


प्यारे मनमाड, मैं तुम्हे हमेशा याद रखूँगा और दुआ करूँगा की मनमाड की जो गरिमा और आवश्यकता आज तक रही है वो सदा साईं भक्तो के मन में ताज़ा रहे। जिस तरह शिर्डी में खंडोबा मन्दिर, शनि-हनुमान-शिव मन्दिर, चावडी, द्वारकामाई, और लेंडी बाग़ बाबा की लीला में अमर हैं मनमाड रेलवे स्टेशन भी उसी तरह साईंलीला का एक अमर हिस्सा बन गया है। -जय साईं


समाचार : २८ फरवरी २००९ को श्री साईं भक्तो की सुविधा के लिए रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने 'साईंनगर शिर्डी' नाम के इस स्टेशन का शुभारम्भ किया और शिर्डी - मुंबई पहली रेल को झंडी दिखाकर रवाना किया। शिर्डी स्टेशन का उद्घाटन करने से पहले श्री यादव ने समाधि मन्दिर में बाबा के आगे पूजा की और आगामी चुनावों के लिए आशीर्वाद माँगा। सभी साईं प्रेमी भक्तो के लिए ये तस्वीर प्रस्तुत है।


Friday, February 13, 2009

हैप्पी वैलेंटाइनस डे

श्रीसाईं सच्चरित्र में बाबा ने कई स्थानों पर सत्यापित किया है की सभी संत आपस में भाई का रिश्ता रखते हैं। संत रामकृष्ण परमहंस के देहावसान के दिन तो बाबा ने बहत्तर घंटे के लिए अपने प्राण ब्रहम्मांड में चढ़ा लिए थे। आपको भी आश्चर्य हो रहा होगा की आख़िर आज मैं संतो के इस रिश्ते की बात कर क्यूँ रहा हूँ?


मित्रो जैसा की आपको मालूम है की कल 'वेलेंटाइनस डे' है। संत वैलेंटाइन का कोई भी अकाट्य प्रमाण न तो रोम के पास है, जहाँ के वो समझे जाते हैं और ना ही कहीं और इस बात का सबूत है की संत वैलेंटाइन नामक संत कभी हुआ है। मगर विश्व में ऐसे कई त्यौहार और पर्व हैं जिन्हें मानव की भलाई और विभिन्न समाजो में फैले झगडो को दूर करने वाले महान लोगो से जोड़ा गया है। संत वैलेंटाइन को भी नफरत और परस्पर वैमनस्य को दूर करके प्रेम का भाव पैदा करने वाले एक संत के रूप में जाना गया है।

'वैलेंटाइनस डे' जाना जाता है प्यार के लिए। जिस तरह 'होली' का त्यौहार प्रेम और एकता को बढ़ावा देने वाला पर्व है उसी प्रकार 'वैलेंटाइनस डे' भी प्यार और मुहब्बत को याद करने का पर्व है। 'वैलेंटाइनस डे' किसी भी तरह से 'वासना' से जुडा हुआ त्यौहार नहीं है. संत वैलेंटाइन ने कभी भी अपनी पत्नी या किसी महिला मित्र को लाल गुलाब का फूल देकर प्यार का इज़हार किया हो ऐसा कहीं नहीं आता. 'संत वैलेंटाइन' के जो भी किस्से और कहानिया प्रचलित हैं उसके अनुसार संत वैलेंटाइन ने समूची मानव जाती के लिए प्रेम का इज़हार किया था. आज भी जो लोग जानते हैं वो मानते हैं की 'वैलेंटाइनस डे' अपने सभी झगडे और नफरते भूल कर प्रेम और विश्वास बढ़ाने वाला त्यौहार है. मेरा विचार है की जब दो संस्कृतिया मिलती हैं तब एक संस्कृति समाप्त नहीं होती बल्कि उनके मेल से उन दोनों ही संस्कृतियों के संबंधो में प्रगाढ़ता आती है. वास्तव में मानव ने अपने जैसे लोगो को साथ जोड़कर एक संस्कृति का निर्माण किया ही इसलिए था की वो और ज़्यादा समृद्ध हो सकें.

मेरे विचार से 'वैलेंटाइनस डे' को भी आपसी प्रेम और विश्वास को बढ़ाने वाला पर्व मानते हुए, उन सभी लोगो को जो आपसे द्वेष और नफरत रखते हैं, गुलाब का फूल देकर 'हैप्पी वैलेंटाइनस डे' कहना चाहिए. वैसे भी आजकल हमारे पास इतना वक्त ही नहीं है की हम अपने मित्रो और साथियो से प्यार का इज़हार कर सकें इसलिए हमें भी 'वैलेंटाइनस डे' जैसे पर्व की नितांत आवश्यकता है. जहाँ तक श्रीसाईं का विचार करें तो बाबा ने भी हमें प्यार और आपसी भाईचारे का संदेश दिया है. बाबा का हमारे लिए प्यार भी संत वैलेंटाइन के जैसा ही है जो वक्त के साथ-साथ बढ़ता ही जा रहा है. बाबा को अपने मन में स्थान देते हुए वैलेंटाइनस डे के पर्व पर मैं श्रीसाईंनाथ महाराज को अपनी तरफ़ से 'हैप्पी वैलेंटाइनस डे' कहता हूँ आप अपनी तरफ़ से ख़ुद कहिये. -जे साईंराम

Sunday, February 8, 2009

क्या है सबका मालिक एक॑?

ओ३म् साँई राम। हेमाडपंतजी साँई सच्चरित्र में लिखते हैं कि बाबा अक्सर कहा करते थे सबका मालिक एक। आइए बाबा के इसी संदेश पर कुछ बात करें। बाबा के विषय में हम जितना मनन करते जाते हैं बाबा के संदेशों को समझना उतना ही आसान होता जाता है। बाबा के बारे में लिखना और पढ़ना हम साँई भक्तो को इतना प्रिय है कि बाबा की एक लेखिका भक्तन ने तो अपनी एक किताब में बाबा को ढेर सारे पत्र लिखे हैं। मेरा मानना है कि साँई को पतियां लिखुं जो ये होय बिदेस। मन में तन में नैन में ताको कहा संदेस॥ मगर साँई के विषय में बातें करना जैसे आत्मसाक्षात्कार करना है।

बाबा ने बहुत सहजता से कहा है कि सबका मालिक एक। ऐसा कह पाना शायद बाबा के लिए ही सम्भव था क्योंकि समस्त आसक्तियों और अनुरागों से मुक्त एक संत ही ऐसा कह सकता है। प्रचलित धर्म चाहे वो हिन्दु धर्म हो, इस्लाम हो, सिख हो, ईसाई हो, जैन हो, बौद्ध हो या कोई अन्य, प्रश्न ये है कि जो ये धर्म सिखा रहे हैं क्या वो गलत है॑ क्योंकि अगर गलत ना होता तो बाबा को इस धरती पर अवतार लेने की आवश्यकता ही ना होती। हमारे ये सभी प्रचलित धर्म इतने कट्टर क्यों हैं कि अगर एक हिन्दु किसी मुसलमान के साथ बैठता है या उसका छुआ खाता-पीता है तो उसका कथित धर्म भ्रष्ट हो जाता है॑ वैसे आप ही सोचिए वो धर्म ही क्या जो छूने या खानेॅपीने से भ्रष्ट हो जाए। वास्तव में धर्म जो बताते हैं वो है शिक्षा। एक कथा के अनुसार परमात्मा ने देवों, दानवों और मानवों के जीवन की पहली सीख के रूप में केवल एक अक्षर कहा था 'दा' इसका अर्थ देवों के लिए था कि उन्हें अपने - भोगो और आसक्तियों का दमन करना चाहिए। दानवों के लिए शिक्षा थी कि उन्हें दया करनी चाहिए और मानव जाति को कहा कि उन्हें दान करना चाहिए। बाबा ने कलयुग में एक बार फिर धरती पर आकर हमें इसी शिक्षा की याद दिलाई।

प्रचलित धर्म भी इन तीनों शिक्षाओं पर अमल करने को कहते हैं। सभी धर्मों के अनुसार हमें अपनी आसक्तियों और भोगो का दमन करना चाहिए क्योंकि सभी परेशानियां और तकलीफें आसक्ति से आरंभ होती हैं। इस्लाम में किसी भी प्रकार से ब्याज लेना मना है। जो आसक्ति को दूर करता है। कुरान शरीफ के अनुसार जो मुसलमान अपने पडोसी को भूखा जानकर भी अपना पेट भर लेता है वो अल्लाह की राह में सबसे बडा गुनहगार है यानि अपने आसॅपास के सभी जीवों पर दया का भाव रखना एक सच्चा मुसलमान बनने की कुछ जरूरी शर्तों में से एक है। इसी तरह ईद के पवित्र मौके पर फितरा और जकात का लाजिम होना इस्लाम की दान की शिक्षा का एक रूप है।

श्रीसाँई सच्चरित्र अध्याय २५ में वर्णन है कि श्रीसाँई ने दामू अण्णा कसार की रूई और अनाज के सौदे में धनलाभ की आसक्ति को दूर किया। इसी प्रकार दूसरी शिक्षा है दया। "बाबा की शिक्षा है कि भक्त जो दूसरों को पीडा पहुंचाता है, वह मेरे हृदय को दु:ख पहुंचाता है तथा मुझे कष्ट पहुंचाता है। -श्रीसाँई सच्चरित्र अध्याय ४४" अर्थात हमें प्रत्येक प्राणी पर दया करनी चाहिए। और तीसरी शिक्षा है दान जिसका हेमाडपंतजी ने श्रीसाँई सच्चरित्र के अध्याय १४ में दक्षिणा का मर्म के रूप में वर्णन किया है।

बाबा ने रामनवमी और उर्स एक साथ मनाए क्योंकि बाबा सिखाना चाहते थे कि सभी धर्म एक ही शिक्षा दे रहे हैं। इसीलिए बाबा सदा कहा करते थे कि सबका मालिक एक। ये मालिक ही वो नूर है। वो शिक्षा है जो हमें हमारे जन्म लेने का कारण बताती है। अव्वल अल्लाह नूर उपाया कुदरत के सब बंदे। एक नूर से सब जग उपजया कौन भले कौन मंदे। साँई अपनी कृपा सब पर बनाए रखें यही कामना है।

Sunday, February 1, 2009

बस बेल बजाइए

जय साईंराम, आजकल मैंने एक इश्तेहार देखा है टीवी पर 'घरेलु हिंसा को रोकिये, बस बेल बजाइए'। देखते हुए विचार आया की आख़िर मुसलमानों की मस्जिद में, गुरद्वारो में, गिरजाघरों में हिंदू मंदिरों को तरह बड़े-बड़े घंटे क्यूँ नहीं होते? इसी के साथ मुझे श्रीसाई सत्चरित्र में एक कहानी याद आई की बाबा ने किस प्रकार शिर्डीवालो को समझाया था की रोहिल्ला जो ज़ोर-ज़ोर से इबादत कर रहा है उसकी वजह उसका अन्तःकरण है।

बाबा ने बहुत ही साधारण लीला द्वारा भक्तो को संकेत दिया था की अपने मन को मालिक की याद में स्थित करो। हिंदू मंदिरों में घंटे और शंख की आवाज़, सिख मज़हब में 'बोले सो निहाल' का हुंकार, और इस्लाम में अजान की आवाज़ बताती है हमें अपने चित्त को एक आवाज़ के द्बारा केंद्रित करना चाहिए। किसी भी पीर फकीर के मुरीद ज़ोर-ज़ोर से उनकी जयजयकार करते हैं वो हमारे शरीर को एक ध्वनि में पिरोनेके लिए है।

कहीं दूर बात करने के लिए हमे जिस प्रकार फोन की बेल बजानी पड़ती है वैसे ही अपने सदगुरु में अपना ध्यान लगाने के लिए हमे हमे उसके नाम का हुंकारा भरना पड़ता है या घंटे बजाने पड़ते हैं। इसी विज्ञापन में वो कहते हैं की 'बेल बजाइए और उन्हें बताइये की आपको पता है'। भाव ये है की आपके गुरु को आपके नाम लेने भर से मालूम हो जाए की आप जाने हैं की वो कितना कारसाज़ है और आपको उस पर पूरा भरोसा है। तो अगर अगली बार आपको साईं की, अपने गुरु की याद आए तो हिचाकिये मत बस साईं राम के नाम का जाप कीजिये और अपने मन में स्थित उस बाबा की बेल बजाइए। जय साईं राम -अमित माथुर