Sunday, March 8, 2009

श्री मुकुल नाग से साईं चर्चा में अमित माथुर

साईं चर्चा करने में सभी को अत्यंत आनंद मिलता है। पिछले दिनों श्रीमुकुल नाग से बाबा के विषय में हुई चर्चा के कुछ अंश:
अमित: श्री साईं सत्चरित्र के अनुसार बाबा ने बहुत सी लीलाये की हैं। किसी सज्जन ने तो गड़ना की है श्रीसाईं सत्चरित्र में 64 चमत्कारों का उल्लेख है। आपको बाबा की कौन सी लीला सबसे मनोहर लगती है और क्यूँ?
मुकुलजी: बाबा ने 64 लीलाये नहीं 64 चमत्कार किये हैं ऐसा लिखा है। लीलाओ और चमत्कारों में कुछ भेद है, ऐसा मुझे लगता है।
अमित: कृपया स्पष्ट कीजिये...
मुकुलजी: वास्तव में चमत्कार तो वो हैं जो किसी न किसी प्रकार से विज्ञान के बनाए नीति-नियमो को गलत ठहराते हैं मगर लीलाये वो हैं जो भक्त के मन को पूरी तरह से आंदोलित करके भक्त के मन में परिवर्तन कर देती हैं और भक्त के मन में भगवान् और गुरु को स्थाई रूप से विराजमान कर देती हैं।
अमित: जी, मेरा प्रश्न स्वाभावतः चमत्कारों से है क्यूंकि बाबा की लीलाओ को अच्छा या कमतर आंकना बेवकूफी की बात है।
मुकुलजी (हंसते हुए): हाँ सच कहा बाबा के विषय में बोलते हुए अपने मन-मस्तिष्क को पूरी तरह बाबा के ध्यान में लगाना चाहिए। चलिए अब आपके प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करता हूँ। बाबा से प्रार्थना है की मेरे उत्तर को आपके पाठको के लिए लाभदायक बनाए. बाबा के बहुत से चमत्कारों में केवल बाबा की भक्त परायणता ही दिखाई देती है. बाबा ने कोई भी चमत्कार केवल इसलिए नहीं किया की लोग उस चमत्कार से प्रभावित होंगे, बल्कि ज्यादातर चमत्कार बाबा ने भक्तो को शिक्षा देने के उद्देश्य से किये थे. मुझे बाबा के वो चमत्कार पसंद हैं जहाँ वो शिर्डी से जाने वालो को अपनी मर्ज़ी से आज्ञा देते थे. बाबा की बात ना मानने वाले भक्तो को कष्ट ही उठाना पड़ता था. इसीलिए सच है की 'बाबा को मानो और बाबा की मानो'.
अमित: बाबा के भक्तो में सबसे प्रिये भक्त आपको कौन लगता है? बाबा को तो सभी भक्त प्रिये थे मगर आपको श्रीसाई लीलापुरुषोत्तम का कौन सा भक्त सबसे अच्छा लगता है?
मुकुलजी: वैसे तो सभी भक्त अपने-अपने स्थान पर बाबा के संदेशो और शिक्षाओं को सामने लाते हैं मगर मुझे श्यामा गुरूजी सबसे अधिक पसंद हैं। इसका सबसे बड़ा कारण तो ये है की सदगुरु के चरणों में ये गुरु सदा झुकते रहे और साथ ही साथ बाबा से सबसे अधिक तर्क-वितर्क भी श्यामा गुरूजी ही किया करते थे। मुझे याद आता है स्वामी रामकृष्णा परमहंस ने कहा था की शिष्यों का अधिकार है की वो अपने गुरु को अच्छी तरह से ठोक-बजा कर देख लें और जब सब कुछ सही लगे तब अपना सर्वस्व उस गुरु के चरणों में अर्पित कर दें. श्यामा गुरूजी भी इसी प्रकार बाबा के द्वारा होने वाली लीलाओ का कारण पूछकर प्यासे भक्तो को ज्ञान रुपी शिक्षाओं का पान करवाते थे. यही कारण है की मुझे श्यामा गुरूजी सबसे अधिक पसंद हैं.
अमित: बाबा ने अध्याय 49 में नानासाहेब चांदोरकर को मन पर लगाम रखने और इन्द्रियों को लम्पट होने से रोकने पर बल दिया है। आज के समय में क्या संभव है?
मुकुलजी: बिलकुल नहीं, मेरे विचार से बाबा की किसी भी शिक्षा में उसे अक्षरक्ष पालन करने को कहा हो ऐसा नहीं है। आज के समय में जब हमारे आस-पास का सारा संसार लम्पट हो रहा है तो हमारे लिए साधू बने रहना बिलकुल भी संभव नहीं है। मगर वहीँ आपने ध्यान दिया हो तो ऐसा कहा गया है की आप सुन्दरता को क्या सोचकर देखें. मन को लम्पट न होने देने का एक साधन तो यही है की आप किसी की सुन्दरता में वासना नहीं बल्कि परमपिता परमेश्वर की रचना का दर्शन करें. आप सुन्दर युवती या युवक को देखकर परमेश्वर को शुक्रिया करें की हे परमेश्वर तूने कितनी सुन्दर रचना की है. मन में वासनात्मक विचारों को ना आने दें. प्रत्येक स्थिति में सामान्य रहे.
अमित: मेरा अनुभव है की बाबा से जुड़ने और बाबा का अत्यधिक ध्यान करने पर हमारी मनःस्थिति बदल जाती है। हमारी सोच और ध्यान इस जग से हटने लगता है इसे रोकने का कोई तरीका आपके पास है?
मुकुलजी: पहले तो ये बताओ की बाबा के विचारो और शिक्षाओं की गंगा में बहने से खुद को रोकना ही क्यूँ है?
अमित: क्यूंकि बाबा के विचारो में रहने के कारण हमारा सामाजिक और पारिवारिक जीवन व्यवस्थित नहीं रहता...
मुकुलजी: हाँ, ये बात किसी हद तक सच है। जब आप बाबा के और उनकी लीलाओ के और उनके ध्यान में खोने लगते हैं तो पारिवारिक और सामाजिक जीवन जहाँ झूट बोलना, छल करना, गलत सोचना एक स्वाभाविक क्रिया है, प्रभावित होता है. मगर मेरे विचार से इस व्यवस्था का सञ्चालन करने का कार्य भी हमें बाबा को ही सौंप देना चाहिए. मैंने बहुत से साईं भक्तो को देखा है जो बाबा के ही ध्यान में डूबे रहते हैं मगर आप उन्हें कभी उनके कार्य स्थान पर देखिये, शायद आपको लगेगा की ये 'साईं भक्त' होने का ढोंग कर रहे हैं मगर वो बाबा के द्वारा संचालित क्रिया है जिससे वो यहाँ भी हैं और वहां भी.
अमित: मुकुल भैया, आपका बहुत बहुत धन्यवाद हमसे बातें करने के लिए। मैं बाबा से प्रार्थना करूँगा की आपकी इस चर्चा से साईं भक्तो को अध्यात्मिक लाभ प्राप्त हो। जय साईं राम.
मुकुलजी: जय साईं राम, मालिक आप सबका भला करे.

महामंदी से दुनिया परेशान है, साईं भक्तो के मुखड़े पर फिर भी मुस्कान है

त्यौहार फीके, रंग बेरंग, आम ज़िन्दगी का रूप बदरंग। दुनिया भर में छाई महामंदी से छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा सभी दुखी हैं. श्रीसाईं सत्चरित्र का विवरण लें तो बिलकुल वही दृश्य है जो शिर्डी के आसपास हैजा फैलने के समय था. जहाँ-तहां लोग मर रहे थे, परेशान थे, दुखी थे मगर श्रीसाईं के आशीर्वाद से शिर्डी की सीमओं के भीतर उस हैजे के प्रकोप ने अपने पैर तक नहीं धरे. हम श्रीसाईं के बच्चे हैं हमारा ये मानना है की हमारा मन श्रीसाई की शिर्डी है तो हमें ये भी समझना होगा की ये महामंदी उस हैजे के समान है. अगर उस हैजे का प्रकोप शिर्डी में क़दम नहीं धर सका था तो ये महामंदी हमारे मन को कैसे विचलित कर सकती है? जानता हूँ आप यही सोच रहे हैं की जिनको उस महामंदी ने निगला है उनमें से शायद मैं नहीं हूँ. बिलकुल सही है मगर पर-पीडा को ना समझ सकूं इतना कृपण भी मैं नहीं हूँ. मैं जानता हूँ की इस विकट परिस्थिति में जहाँ लोगो नें अपनी लगभग आधी सेलरी के बराबर किस्तें बना रखी हैं वो रखी सेलेरी आधी ही रह जायेगी तो कितनी मुसीबत में आ जायेंगे.

श्रीसाईं सत्चरित्र के अध्याय 18-19 में हेमाडपंत वर्णन करते हैं की सदगुरु अपनी संतानों का ध्यान वैसे ही रखते हैं जैसे एक कछुवी अपने बच्चो का ध्यान रखती है। कछुवी के बच्चे नदी के एक किनारे पर होते हैं और वो खुद दुसरे किनारे पर उसके बाद में कछुवी की प्रेम भरी दृष्टी ही उसके बच्चो का पालन-पोषण करती है. इसी प्रकार श्रीसाईं भी अपने बच्चो का पालन करते हैं. श्रीसाई की कृपा दृष्टी से उनके बच्चो के घर अन्न और वस्त्रो का कभी अभाव नहीं होता. बाबा ने इसी अध्याय में बताया है की उनके गुरु महाराज ने उनसे केवल दो पैसे मांगे थे 'श्रद्धा' और 'सबूरी' इसके अतिरिक्त उन्होंने अपने शिष्यों को कोई गुरु मन्त्र नहीं दिया. बाबा ने भी सबसे यही दो वचन मांगे हैं.

आज इस महामंदी के विकराल दानव से श्रीसाईं के ये दो पैसे ही हमारी रक्षा करेंगे. आप अपने मन में 'श्रद्धा' रखें की श्रीसाईं हमारी कछुवी माँ है तो हमें केवल उस माँ के प्यार के सहारे ही इस दानव का सर्वनाश करने में सफलता मिलेगी बस इसके लिए हमें दुसरे पैसे 'सबूरी' की सहायता लेनी होगी. बहुत पहले एक साईंभक्त बहिन ने मुझे कहा था की 'बाबा को मत बताओ की तुम्हारी परेशानी कितनी बड़ी है, उस परेशानी को बताओ की तुम्हारा बाबा कितना बड़ा है'. बाबा ने खुद नाना साहेब चांदोरकर से कहा था "तुला कालजी कासले, माझा सारा कालजी आहे' यानि 'तुम्हे चिंता किस बात की है, तुम्हारी चिंता मुझे है'. तो अग़र वो बाबा हमारा करता धरता है तो हमें चिंता करने की कोई ज़रुरत ही नहीं है. आप साईं में यकीन रखें तो वो आपके यकीन में असर पैदा करेगा. बस यहीं हमेशा ध्यान रखें 'बाबा है ना'. दुनिया को दें की 'महामंदी से दुनिया परेशान है, साईं भक्तो के मुखड़े पर फिर भी मुस्कान है'.