Saturday, August 29, 2009

ये गर्व भरा मस्तक मेरा...

जब मैंने ये भजन सुना बहुत अच्छा लगा. लगा मेरे अन्दर का सारा अंहकार नष्ट हो रहा है. ये गर्व भरा मस्तक मेरा, सचमुच हर कोई गर्व कर रहा है. किसी को धन का नशा है, किसी को मान का नशा, किसी को ताक़त का नशा है और किसी को ज्ञान का नशा. गर्व हर किसी को है और उस बात पर है जिसपर नहीं होना चाहिए. कवि ने बहुत सुन्दर अंतःप्रेरणा से लिखा है की हे प्रभु! ये गर्व भरा मस्तक अपने चरणों की धुल तक झुकने दे क्यूंकि अगर तूने इस मस्तक को अपने चरणों में कुबूल कर लिया तो मेरे आस्तित्व की सार्थकता सिद्ध होगी वर्ना तो अभी कई जन्मो तक यहाँ रगड़ना पड़ेगा. हे प्रभु! इस अंहकार और विकार से भरे हुए मन को अब बस एक ही काम करने की आज्ञा दे, बस आर्शीवाद दे की ये मन निज नाम अर्थात तेरे नाम की माला जपता रहे. ये गर्व भरा मस्तक मेरा, प्रभु चरण धूल तक झुकने दे / अंहकार विकार भरे मन को, निज नाम की माला जपने दे.

हे मालिक! मेरे मन में बहुत मैल है. इस दुनिया के विकारों और विचारों ने मेरे मन में बहुत मैल जमा कर दिया है. मेरे मन पर तेरी छाप तो है, मेरे मन के दर्पण में तो सिर्फ तेरा ही अक्स दीखता है मगर इस मैल की वजह से सब छुप गया है. अब अगर इस मैल को धो डालू तो ये जीवन अपने आप तेरे चरणों में अर्पित हो जाएगा. मालिक कुछ ऐसा कर की मैं अपने मन के मैल को धो दूं और ये जीवन तेरा कर दूं. हे प्रभु! मैं तुम्हारा प्रेमी हूँ मुझे तुम्हारे नाम से तुम्हारे धाम से और तुम्हारी यादो से बहुत प्यार है. हे प्राणाधार! अब मुझे इतना का झुका की तेरे सामने खडा होकर इतना शर्मिंदा रहू की फिर उठ ही ना सकू. कवि कहता है की मैं मन के मैल को धो ना सका / ये जीवन तेरा हो ना सका / मैं प्रेमी हूँ, इतना ना झुका / गिर भी जो पडू तो उठने दे.

पता नहीं क्यूँ ज्ञानी और महात्मा संतो ने मुझे अपने चंगुल में फंसा लिया. मुझे ज्ञान और शास्त्र की इतनी बातें बताई की मैं ठेठ भाग्यवादी हो गया. सब कुछ मैंने भाग्य के भरोसे छोड़कर अपने सभी सांसारिक और धार्मिक कर्मो का त्याग कर दिया. मैं गफलत की ऐसी नींद में सो गया की मुझे कुछ भी दिखना और समझना बंद हो गया. मुझे तेरे बारे में ज्ञान तो बहुत दिया गया मगर वास्तव में मैं तुझसे दूर हो गया. अब तेरी ही कृपा से मेरी आँखें खुली हैं. अब जो देखता हूँ तो मुझे रोना आ जाता है. मुझे दुःख होता है की मैंने ये क्या अनर्थ कर दिया. हे प्रभु! अब ये जग चाहे तो सोता रहे मगर मुझे और मेरे अंतर्मन को अपने ज्ञान और वैराग्य की ज्योत से जगा दो. कवि बहुत सुन्दरता से कहता है मैं ज्ञान की बातों में खोया / और कर्महीन पड़कर सोया / जब आँख खुली तो मन रोया / जग सोये मुझको जागने दे.

हे कृपानिधान! तूने मुझे बनाया है तो अब मैं चाहे जैसा भी हूँ. दुनिया के बीच रहकर अपने नाम और प्रतिष्ठा के लिए मेरा मोह बहुत है. मैं सबके काम करता हूँ जिस से सब मुझे नाम दें और मेरे जयजयकार करें. हे साईं! अब मैं जैसा भी हूँ खोटा, या खरा इसको मत देख. हे नानक! देख न लेख मेरे माथे पे, मेरे कर्मो पर मत जा (वेख न लेख मत्थे ते मेरे, करमा ते ना जावी), हे प्रभु! अब तो मैं तेरी शरण में आ गया हूँ. तेरी शरण और तेरे चरण तो माँ के प्रेम की तरह निर्दोष हैं साईं, अब तू या तो एक बार कहदे "खाली जा" या फिर अपने प्यार की बरसात मुझे पर होने दे और इस कृपा की वर्षा में मुझे बह जाने दे. कवि ने अंतिम पद में बहुत सुन्दरता से शरणागत होते हुए लिखा है जैसा हूँ मैं, खोटा या खरा / निर्दोष शरण में आ तो गया / इक बार ये कह दे खाली जा / या प्रीत की रीत छलकने दे.

ये गर्व भरा मस्तक मेरा
प्रभु चरण धूल तक झुकने दे
अंहकार विकार भरे मन को
निज नाम की माला जपने दे

मैं मन के मैल को धो ना सका
ये जीवन तेरा हो ना सका
मैं प्रेमी हूँ, इतना ना झुका
गिर भी जो पडू तो उठने दे.
ये गर्व भरा मस्तक मेरा
प्रभु चरण धूल तक झुकने दे

मैं ज्ञान की बातों में खोया
और कर्महीन पड़कर सोया
जब आँख खुली तो मन रोया
जग सोये मुझको जागने दे.
ये गर्व भरा मस्तक मेरा
प्रभु चरण धूल तक झुकने दे

जैसा हूँ मैं, खोटा या खरा
निर्दोष शरण में आ तो गया
इक बार ये कह दे खाली जा
या प्रीत की रीत छलकने दे.
ये गर्व भरा मस्तक मेरा
प्रभु चरण धूल तक झुकने दे