Saturday, January 31, 2009

क्या है प्याज और बाबा का सम्बन्ध?

"ओ नाना! जिसमे प्याज हज़म करने की शक्ति हो, उसे ही खानी चाहिए, अन्य को नहीं" श्रीसाईं सत्चरित्र के अध्याय २३ में श्री गोविन्द रघुनाथ दाभोलकर जी बाबा के उपरोक्त वचन के साथ ही स्पष्ट कर दिया है की प्याज और बाबा का क्या सम्बन्ध रहा होगा।

वास्तव में श्रीसाई से जुड़ने के बाद पहला विचार मन में यही आता है की भोजन में किस प्रकार की चीजे खाई जाए और कौन से नहीं। बाबा से जुड़ने के बाद सबसे पहले भगतजन मांसाहार त्याग देते हैं। मांस खाना चाहिए इसकी वकालत और समर्थन मैं कहीं भी नहीं कर रहा हूँ। बस विचार ये है की खाने-पीने के सम्बन्ध में बाबा का क्या कहना है। एक योगाभ्यासी जो नाना साहेब चांदोरकर के साथ शिर्डी आया था समाधि में ध्यान नहीं लगा पा रहा था। बाबा को प्याज और रोटी खाते हुए उसने देखा तो उसके मन में विचार आया की प्याज और रोटी खाने वाला ये इंसान मुझे क्या देगा? इसी पर बाबा ने नाना साहेब चांदोरकर से कहा की "प्याज उसी को खानी चाहिए जो उसे हज़म कर सके"।

प्याज को वैदिक धर्म में ना खाए जाने योग्य भोज्य पदार्थ बताया गया है। प्याज और लहसुन में गंध के कारण शायद ऐसा किया गया है। बाबा ने प्याज के सम्बन्ध में दूसरा उपदेश तब दिया था जब कुशा भाऊ जो विख्यात और शक्तिशाली तंत्रज्ञ थे बाबा के साथ बैठे थे। वो एकादशी का दिन था और बाबा ने सामने पड़ी प्याज, कुशा भाऊ से खाने को कहा। कुशा भाऊ, जो बाबा के चरणों में आकर तंत्र-मन्त्र आदि सारे वाम मार्गी शक्तिया छोड़ चुके थे, बाबा के कहने मात्र पर प्याज खाने को तैयार हो गए. एक ब्रह्मण के लिए एकादशी के दिन प्याज खाने जैसा पाप 'घोर पाप' की संज्ञा में आता है. कुशा भाऊ ने कहा बाबा मैं तो तब प्याज खाऊँगा जब तुम भी प्याज खाओगे. बाबा ने भी वहां रखी प्याज खाई और कुशा भाऊ ने भी. तब बाबा अचानक ज़ोर से चिल्ला कर बोले "अरे देखो ये बामन एकादशी के दिन प्याज खा रहा है." कुशा भाऊ ने कहा "बाबा प्याज तो आपने भी खाई है." तब बाबा मज़ाक करते हुए बोले "नहीं मैंने तो शकरकंदी खाई है" इस पर कुशा भाऊ ने कहा "नहीं आपने अभी प्याज खाई है". तब बाबा ने फौरन उलटी कर दी और प्याज की जगह शकरकंदी बाहर आई. कुशा भाऊ ने बिना देर किए वो सारी शकरकन्दी खा ली इस पर बाबा ने कहा "अरे अरे ये क्या कर रहा है, मेरी उल्टी क्यूँ खा रहा है?" इस पर कुशा भाऊ ने कहा "बाबा यही तो तुम्हारा असली प्रसाद है". कुशा भाऊ की इस लगन और श्रद्धा के प्रतिफल में बाबा ने उन्हें आशीर्वाद दिया की वो जहाँ भी बाबा ध्यान करके अपनी मुट्ठी बंद करेंगे 'धूनी' की गर्म-गर्म ऊदी उनके हाथ में आ जायेगी और उस से वो लोगो का भला कर सकेंगे. ये कथा श्रीसाईं सत्चरित्र में वर्णित है।

बाबा ने प्याज खाकर यही बताया है की हमे अपनी इन्द्रियों पर इतना नियंत्रण होना चाहिए की खाने-पीने या आस पास के माहोल का हमारे चरित्र पर असर ना पड़े. ये बड़ी विलक्षण बात है की दुनिया के इतिहास का सबसे बड़ा दुष्ट माना जाने वाला व्यक्ति हिटलर शाकाहारी था. यहाँ मैं फिर बता दूँ की मेरा मकसद ये कतई नहीं है की हमे मांसाहार करना चाहिए. मेरा निवेदन सिर्फ़ ये है की बाबा और प्याज के रिश्ते को समझकर हम बाबा से प्रार्थना करें की वो हमे भी इतनी शक्ति दें की हम प्याज रुपी बुरी भावनाओं और अनाचारी मस्तिष्क को हज़म कर लें अर्थात हमारे चरित्र पर बाहरी दुःशक्तियों का प्रभाव ना हो और प्याज रुपी ये गन्दगी, शकरकंदी के समान स्वादिष्ट भावना में बदल जाए. जय साईं राम -आपका मुकुल नाग, 'साईबाबा' शूटिंग स्टूडियो, वडोदरा, गुजरात.

Thursday, January 29, 2009

मुकुल नाग जी और साईं संदेश प्रचार

जय साईंराम, श्री साईं ने 1918 में अपना मानव चोला छोड़ दिया था और उसके ठीक 59 साल के बाद पहली बार साईं भक्तो को सिनेमा के स्क्रीन पर श्री सुधीर दलवी जी के रूप में चलते-फिरते-बोलते बाबा नज़र आए सन 1977 में रिलीज़ फ़िल्म 'शिर्डी के साईं बाबा' में। ये एक अद्भुत संयोग है की पिछले लगभग 28 सालो तक बाबा के रूप में दूसरा कोई अभिनेता साईं भक्तो को श्रीसाईं के दिव्य स्वरुप में पसंद नहीं आया। साल 2005 में धार्मिक धारावाहिकों के चिर-परिचित निर्माता-निर्देशक स्व० श्री रामानंद सागर जी ने श्रीसाईंनाथ महाराज के पवन जीवन चरित्र को लेकर एक धारावाहिक प्रस्तुत किया 'साईंबाबा'। 'साईबाबा' धारावाहिक के शुरू होने के बहुत कम समय बाद ही श्रीसाईं ने श्री रामानंद सागर को अपने में विलीन कर लिया मगर धारावाहिक को मिला उनका आशीर्वाद यथावत कायम रहा और धारावाहिक ने अब तक अपने चार वर्ष सफलतापूर्वक संपन्न किए हैं।

इसी धारावाहिक में साईंबाबा के पवित्र चरित्र को प्रस्तुत करने का कार्य राष्ट्रिय नाट्य विद्यालय के छात्र रहे श्री मुकुल नाग को सौपा गया। धारावाहिक से अप्रसन्न लोगो ने सोचा होगा की बाबा के रूप में तो आज तक सुधीर दलवी जी के अतिरिक्त साईं भक्तो को कोई पसंद ही नहीं आया, तो अब ये अभिनेता क्या ख़ास कर लेगा? मगर जैसे ही धारावाहिक का प्रसारण शुरू हुआ मुकुलजी धीरे-धीरे साईं भक्तो के मन में अपनी जगह बनाने लगे। इतना ही नहीं श्रीसाईं के रूप में उन्हें दुनिया भर के साईं भक्तो का अपार प्रेम प्राप्त हुआ। मुकुलजी का ऑरकुट पेज, यूंट्यूब पर उनके धारावाहिक के विडियो इस बात के गवाह हैं की उन्हें सारी दुनिया से साईं भक्तो का आशीर्वाद मिल रहा है।


धारावाहिक के अतिरिक्त कुरीतियों और बुराइयों से समाज के परेशान लोगो में श्रीसाईं संदेश का प्रचार करने के लिए मुकुलजी ने श्रीसाईं स्वरुप में मंच पर 'श्रीसाईं संदेश प्रचार' का कार्यक्रम आरम्भ किया। श्रीसाईं के स्वाभाविक भावो और स्वरुप के सबके सामने रखते हुए बाबा के दिव्य संदेशो का प्रचार करना एक अत्यन्त प्रभावी और कारगर उपाय साबित हो रहा है। पिछले वर्ष श्रीसाईं की लीलास्थली शिर्डी गाव से मुकुलजी ने अपने ही निर्देशन में तैयार तीन घंटे के सम्पूर्ण नाटक 'सबका मालिक एक है' का मंचन, श्री साईंबाबा संस्थान ट्रस्ट के सहयोग से किया। इसके बाद इस ध्वनि एवं प्रकाश नाटक 'सबका मालिक एक है' का मंचन भारत के विभिन्न स्थानों पर हो चुका है।

श्रीसाईं कार्य में श्री मुकुल नाग जी के समस्त प्रयासों में आप सभी भक्तजनों एवं साईंप्रेमियो का आशीर्वाद प्राप्त हो यही कामना है। -रिपोर्ट: अमित माथुर

साईं शक्ति से साईं कार्य में

ॐ साईं राम, भारत सदा से ही विभिन्नाताओ में एकता का देश रहा है। दुनिया के किसी भी देश में इतने धर्म और सम्प्रदाय एक साथ खुशी-खुशी नहीं रहते। मेरे विचार में इसका सबसे बड़ा कारण यही है की समय-समय पर जब दिव्य संतो ने भारत की भूमि पर जन्म तब लोगो ने उन्हें दुत्कारा नहीं बल्कि सत्कारा है। भारत की सभ्यता और संस्कृति में संत पूजा और साधू सम्मान का स्थान गृहस्थो के लिए सबसे बड़ा धर्म है। दान और करुणा के बहुत से पाठ भारत के दिव्य संतो ने भारतवासियो को पढाये और भारत के रहने वालो ने उन संदेशो और विचारों को अपने जीवन में उतार लिया। श्रीसाईंबाबा से किसी भक्त ने पूछा "बाबा क्या आपके पास आने वाले सभी भक्तो का कल्याण हो जाता है?" तब बाबा ने बहुत शांत और समझाते हुए उत्तर दिया "अगर आम के पेड़ की सभी बौर आम बन जाएँ तो उन्हें गिनना और समेटना ही मुश्किल हो जायेगा। इसी प्रकार जिस भक्त का अन्तः मुझसे जुड़ गया हो और उसके ह्रदय में दया और करुणा का वास हो तो उस भक्त की सभी मनोकामनाये पूर्ण हो जाती हैं।"

जिस तरह बाबा के सभी भक्त एक जैसे नहीं हो सकते वैसे ही साईं समाज के सब सदस्य भी एक समान नहीं हो सकते। बाबा के इस समाज का सदस्य बनने के बाद जब कुछ साईं भक्तो को साईं संदेश के उलट काम करते हुए देखते हैं तो मन बहुत अशांत हो जाता है। साईं समाज में रहने और साईं भक्तो से जुड़ने में भी कष्ट का अनुभव होने लगता है। ऐसे बहुत से तथाकथित साईं भक्त मिलते हैं जो ख़ुद को बाबा का सबसे प्रिये मानते हैं और सिर्फ़ बाबा के नाम से जुड़ कर अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहते हैं। ऐसे बहुत से भक्त मिलते हैं जो "बाबा का नेक काम है" कह कर अपनी अहंकारी और सांसारिक इच्छाओ को पूरा करना चाहते हैं।

श्रीनरसिंह स्वामी जी लिखते हैं की "जब मैंने बाबा के भक्तो का असली अनुभव एकत्र करना प्रारंभ किया तो मुझे ऐसे बहुत से लोग मिले जो अपने और बाबा के संबंधो का झूठा जाल बुने बैठे थे। मगर बाबा ने स्वयं ही मुझे विवेक दिया और मैं सही अनुभवों का संकलन करने में सफल हुआ" इसका अर्थ तो यही हुआ की साधारण समाज की तरह ही साईं समाज में भी अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के साईं भक्त मोजूद हैं। बाबा की अन्तः प्रेरणा और साईं स्मरण से ही इन साईं भक्तो से मुक्ति पाई जा सकती है।

सबसे पहले तो साईं के कार्यो का सारा श्रेय श्रीसाई को ही देना चाहिए। अगर किसी भी कार्य को करते हुए 'मैं' की भावना मन में आ गई तो समझिये दूध उबलने से पहले ही उसमे बिल्ली मुहं मार गई, अर्थात कार्य के आरम्भ होने से पहले ही उस कार्य का सत्यानाश हो गया। इस विशाल संसार में करने वाला भी साईं है और कराने वाला भी साईं ही है। हमे यही विचार करना चाहिए की हमारे सारे जीवन का एक मात्र ध्येय है 'साईं शक्ति से साईं कार्य में'।

Wednesday, January 28, 2009

नॉएडा में साईं आस ने रचा दान का इतिहास

25 जनवरी 2009 को नॉएडा के सेक्टर 34 में 'साईं आस संस्था' ने अपना तीसरा वार्षिक उत्सव मनाया। इस आयोजन में स्टार प्लस और एनडीटीवी इमेजिन पर प्रसारित धारावाहिक साईबाबा के मुख्य अभिनेता श्री मुकुल नाग ने भी हाजिरी लगाई और श्रीसाईं का आशीर्वाद प्राप्त किया। श्री मुकुल नाग के साथ उनके अभिन्न मित्र श्रद्धा सबूरी समिति रोहिणी से श्री नेपाल सिंह और श्री नरेश मदान जी ने भी बाबा के चरणों में हाजिरी लगाई। इस अवसर पर साईं आस परिवार के सभी सदस्यों ने तन-मन से बाबा का स्वागत किया और साईं आस के मुख्य सदस्य श्री अलोक मिश्रा और श्रीमती अंजू सिंगला ने बाबा का गुणगान किया। इस अवसर पर श्री अलोक मिश्रा की मधुर आवाज़ में साईं आस प्रस्तुति ऑडियो सीडी 'साईं भजन रस' का विमोचन भी श्री मुकुल नाग जी के द्वारा हुआ।

श्रीसाईं की कृपा भी अनूठी है। श्रीसाईं सत्चरित्र में गोविन्द रघुनाथ दाभोलकर जी ने एक पूरा अध्याय दक्षिणा के मर्म को समझाते हुए लिखा है। बाबा का दक्षिणा लेने का ढंग भी बाबा की अन्य लीलाओ की तरह अनूठा था। किसी-किसी धनवान से तो वो एक पैसा दक्षिणा भी नहीं लेते थे और किसी-किसी से वो उधार लेकर दक्षिणा देने को भी कहते थे। लीला का सार केवल यही है की दक्षिणा देने वाले या लेने वाले को कभी भी नुक्सान नहीं हुआ।

साईं आस संस्था अपने वार्षिक उत्सव के अवसर पर दान को विशेष महत्त्व देती है। पिछले कुछ वर्षो से साईं आस दुर्बल आय वर्ग के बच्चो को निशुल्क पुस्तके और चिकित्सा उपलब्ध करवाने के अतिरिक्त बाबा के ज़रूरतमंद बच्चो को सिलाई मशीन और चल पाने में असमर्थ लोगो को साइकिल का वितरण कर रही है। इस वर्ष साईं आस के तीसरे वार्षिक उत्सव के अवसर पर साईं आस संस्था से जुड़े धर्मार्थी साईं भक्तो ने चौदह साइकिल और एक सिलाई मशीन का दान किया। इस अवसर पर साईबाबा धारावाहिक के मुख्य अभिनेता श्री मुकुल नाग ने कहा "दान का महत्त्व तो वैसे भी बहुत है और बाबा के श्रीमुख से दान की महिमा जानने के बाद तो लगता है की जीवन का मूल मन्त्र ही दान को बना लेना चाहिए"। इस अवसर पर साईं आस प्रमुख श्री अलोक मिश्रा ने सभी उपस्थित साईं भक्तो, साईं आस के सहयोगियों और श्री मुकुल नाग को धन्यवाद दिया और बाबा से प्रार्थना की के आने वाले समय में साईं आस संस्था को और शक्ति दें की वो बाबा के चरणों में और धार्मिक कार्य कर सकें। -रिपोर्ट: अमित माथुर, गाजियाबाद (saiamit@in.com)

Tuesday, January 27, 2009

सबका मालिक एक है

ॐ साईंराम, बाबा ने अपने जीवन के कुछ ही साल द्वारकामाई में बिताये मगर द्वारकामाई से जो संदेश उन्होंने सारी दुनिया के लोगो के लिए लिया वो सदा सर्वदा के लिए अमर हो गया. बाबा ने जिस समय शिर्डी में अवतार लिया था उस समय शिर्डी भारत के एक साधारण गाँव से अधिक नहीं था. समाज में बुराईया और कुरीतिया भरी पड़ी थी. बाबा ने हमेशा इन कुरीतियों और बुराइयों का विरोध किया और अपनी द्वारकामाई से बस एक ही संदेश दिया की सबका मालिक एक है. बाबा के कहने में कुछ जादू था. भक्तो ने सुना और बाबा की बताई राह चल पड़े. बाबा ने श्री साईं सत्चरित्र की कहानियो में बताया है की दुनिया की हर चीज़ में मालिक का अंश है. बाबा ने कहा की मुझे हर पशु-पक्षी, कीट-पतंग, सजीव-निर्जीव में समझो. बाबा वास्तव में केवल साढे तीन हाथ के प्राणी नहीं थे बाबा अपने आप में एक संस्कार, एक विद्यालय थे. बाबा के वचनों में हिन्दुओ की गीता, मुसलमानों की कुरान, सरदारों के गुरु ग्रन्थ साहिब और इसाइओ की बाइबल. बाबा कभी-कभी वो शिक्षा भी देते थे जो शायद किसी भी धर्मग्रन्थ में नहीं मिलेगी. बाबा के नाम का जो प्रभाव और स्पंदन उस समय भक्तो के मन में होता था वही आज भी हम अपने ह्रदय में महसूस कर सकते हैं. मुझे आपके संदेशो की प्रतीक्षा रहेगी।