Monday, May 10, 2010

गृहस्थ में कैसे रहे ?

"घर में सब सुखी हैं, पुत्र बुद्धिमान हैं, पत्नी मधुरभाषिणी है, अच्छे मित्र हैं, अपनी पत्नी का ही संग है, नौकर आज्ञापरायण हैं. प्रतिदिन अतिथि-सत्कार एवं भगवान् शंकर का पूजन होता है. पवित्र एवं सुन्दर खान-पान है और नित्य ही संतो का संग किया जाता है-ऐसा जो गृहस्थाश्रम है, वह धन्य है."
-साभार 'गृहस्थ में कैसे रहे ?'


गृहस्थ पर पांच ऋण होते हैं. पितृऋण, देवऋण, ऋषीऋण, भूतऋण और मनुष्यऋण ये क्या हैं ?

पितृऋण : अपने पूर्वजो और पितरो के लिए दिया गया दान और किया गया श्राद्धकर्म पितरो के आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आवश्यक होता है. अपने पितरो को ये प्रथा जारी रखने के लिए गृहस्थपुरुष को पुत्र उत्पन्न करना होता है. पुत्र जन्म के बिना गृहस्थ मनुष्य पितृऋण के मुक्त नहीं होता.

देवऋण : वर्षा होती है, धाम तपता है, हवा चलती है, पृथ्वी सबको धारण करती है, रात्रि में चन्द्रमा और दिन में सूर्य प्रकाश करता है, जिससे सबका जीवन निर्वाह चलता है - यह सब हमपर देवऋण है. हवन, यज्ञ करने से देवताओं की संतुष्टि होती है और गृहस्थ देवऋण से मुक्त हो जाते हैं.

ऋषीऋण : ऋषी-मुनियों ने, संत-महात्माओं ने जो ग्रन्थ बनाए हैं, स्मृतिया बनायीं हैं, उनसे हमें प्रकाश मिलता है, शिक्षा मिलती है, कर्तव्य-अकर्तव्य का ज्ञान होता है; अतः उनका हमपर ऋण है. उनके ग्रंथो को पढने से, स्वाध्याय करने से, पठन-पाठन करने से, संध्या-गायत्री करने से हम ऋषीऋण से मुक्त हो जाते हैं.

भूतऋण : गाय-भैंस, भेड़-बक़री, ऊँट-घोडा आदि जितने प्राणी हैं, उनसे हम अपना काम चलाते हैं, अपना जीवन निर्वाह करते हैं. वृक्ष-लता आदि से फल-फूल, पत्ती-लकड़ी आदि लेते हैं. ये हमपर दूसरो का, प्राणियों का ऋण है. पशु-पक्षियों को घास-दाना, अन्न आदि देने से, जल पिलाने से, वृक्ष-लता आदि को खाद और जल देने से हम इस भूतऋण से मुक्त हो जाते हैं.

मनुष्यऋण : बिना किसी दूसरे मनुष्य की सहायता लिए हमारा जीवन निर्वाह नहीं होता. हम दूसरो के बनाये हुए रास्ते पर चलते हैं, दूसरो के बनाय हुए स्रोतों से पानी काम में लेते हैं, दूसरो के लगाय हुए पेड़-पौधो को काम में लेते हैं, दूसरो द्वारा उत्पन्न किये हुए अन्न आदि खाद्य पदार्थो को काम में लेते हैं-यह उनका हमपर ऋण है. दूसरो की सुख-सुविधा के लिए प्याऊ लगवाने, बगीचा लगाने, रास्ता बनवाने, धर्मशाला बनवाने, भंडार खिलाने आदि से हम मनुष्यऋण से मुक्त हो सकते हैं.

स्मरण रहे, समस्त संसार को त्याग कर संन्यास और वानप्रस्थ गृहण करने वालो और भगवान् के पूर्णत: शरणागत होने वाले को कोई भी ऋण नहीं देना होता. वह सर्वथा मुक्त हो जाता है.