ओ३म् साँई राम। हेमाडपंतजी साँई सच्चरित्र में लिखते हैं कि बाबा अक्सर कहा करते थे सबका मालिक एक। आइए बाबा के इसी संदेश पर कुछ बात करें। बाबा के विषय में हम जितना मनन करते जाते हैं बाबा के संदेशों को समझना उतना ही आसान होता जाता है। बाबा के बारे में लिखना और पढ़ना हम साँई भक्तो को इतना प्रिय है कि बाबा की एक लेखिका भक्तन ने तो अपनी एक किताब में बाबा को ढेर सारे पत्र लिखे हैं। मेरा मानना है कि साँई को पतियां लिखुं जो ये होय बिदेस। मन में तन में नैन में ताको कहा संदेस॥ मगर साँई के विषय में बातें करना जैसे आत्मसाक्षात्कार करना है।
बाबा ने बहुत सहजता से कहा है कि सबका मालिक एक। ऐसा कह पाना शायद बाबा के लिए ही सम्भव था क्योंकि समस्त आसक्तियों और अनुरागों से मुक्त एक संत ही ऐसा कह सकता है। प्रचलित धर्म चाहे वो हिन्दु धर्म हो, इस्लाम हो, सिख हो, ईसाई हो, जैन हो, बौद्ध हो या कोई अन्य, प्रश्न ये है कि जो ये धर्म सिखा रहे हैं क्या वो गलत है॑ क्योंकि अगर गलत ना होता तो बाबा को इस धरती पर अवतार लेने की आवश्यकता ही ना होती। हमारे ये सभी प्रचलित धर्म इतने कट्टर क्यों हैं कि अगर एक हिन्दु किसी मुसलमान के साथ बैठता है या उसका छुआ खाता-पीता है तो उसका कथित धर्म भ्रष्ट हो जाता है॑ वैसे आप ही सोचिए वो धर्म ही क्या जो छूने या खानेॅपीने से भ्रष्ट हो जाए। वास्तव में धर्म जो बताते हैं वो है शिक्षा। एक कथा के अनुसार परमात्मा ने देवों, दानवों और मानवों के जीवन की पहली सीख के रूप में केवल एक अक्षर कहा था 'दा' इसका अर्थ देवों के लिए था कि उन्हें अपने - भोगो और आसक्तियों का दमन करना चाहिए। दानवों के लिए शिक्षा थी कि उन्हें दया करनी चाहिए और मानव जाति को कहा कि उन्हें दान करना चाहिए। बाबा ने कलयुग में एक बार फिर धरती पर आकर हमें इसी शिक्षा की याद दिलाई।
प्रचलित धर्म भी इन तीनों शिक्षाओं पर अमल करने को कहते हैं। सभी धर्मों के अनुसार हमें अपनी आसक्तियों और भोगो का दमन करना चाहिए क्योंकि सभी परेशानियां और तकलीफें आसक्ति से आरंभ होती हैं। इस्लाम में किसी भी प्रकार से ब्याज लेना मना है। जो आसक्ति को दूर करता है। कुरान शरीफ के अनुसार जो मुसलमान अपने पडोसी को भूखा जानकर भी अपना पेट भर लेता है वो अल्लाह की राह में सबसे बडा गुनहगार है यानि अपने आसॅपास के सभी जीवों पर दया का भाव रखना एक सच्चा मुसलमान बनने की कुछ जरूरी शर्तों में से एक है। इसी तरह ईद के पवित्र मौके पर फितरा और जकात का लाजिम होना इस्लाम की दान की शिक्षा का एक रूप है।
श्रीसाँई सच्चरित्र अध्याय २५ में वर्णन है कि श्रीसाँई ने दामू अण्णा कसार की रूई और अनाज के सौदे में धनलाभ की आसक्ति को दूर किया। इसी प्रकार दूसरी शिक्षा है दया। "बाबा की शिक्षा है कि भक्त जो दूसरों को पीडा पहुंचाता है, वह मेरे हृदय को दु:ख पहुंचाता है तथा मुझे कष्ट पहुंचाता है। -श्रीसाँई सच्चरित्र अध्याय ४४" अर्थात हमें प्रत्येक प्राणी पर दया करनी चाहिए। और तीसरी शिक्षा है दान जिसका हेमाडपंतजी ने श्रीसाँई सच्चरित्र के अध्याय १४ में दक्षिणा का मर्म के रूप में वर्णन किया है।
बाबा ने रामनवमी और उर्स एक साथ मनाए क्योंकि बाबा सिखाना चाहते थे कि सभी धर्म एक ही शिक्षा दे रहे हैं। इसीलिए बाबा सदा कहा करते थे कि सबका मालिक एक। ये मालिक ही वो नूर है। वो शिक्षा है जो हमें हमारे जन्म लेने का कारण बताती है। अव्वल अल्लाह नूर उपाया कुदरत के सब बंदे। एक नूर से सब जग उपजया कौन भले कौन मंदे। साँई अपनी कृपा सब पर बनाए रखें यही कामना है।
Sunday, February 8, 2009
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