Sunday, February 1, 2009

बस बेल बजाइए

जय साईंराम, आजकल मैंने एक इश्तेहार देखा है टीवी पर 'घरेलु हिंसा को रोकिये, बस बेल बजाइए'। देखते हुए विचार आया की आख़िर मुसलमानों की मस्जिद में, गुरद्वारो में, गिरजाघरों में हिंदू मंदिरों को तरह बड़े-बड़े घंटे क्यूँ नहीं होते? इसी के साथ मुझे श्रीसाई सत्चरित्र में एक कहानी याद आई की बाबा ने किस प्रकार शिर्डीवालो को समझाया था की रोहिल्ला जो ज़ोर-ज़ोर से इबादत कर रहा है उसकी वजह उसका अन्तःकरण है।

बाबा ने बहुत ही साधारण लीला द्वारा भक्तो को संकेत दिया था की अपने मन को मालिक की याद में स्थित करो। हिंदू मंदिरों में घंटे और शंख की आवाज़, सिख मज़हब में 'बोले सो निहाल' का हुंकार, और इस्लाम में अजान की आवाज़ बताती है हमें अपने चित्त को एक आवाज़ के द्बारा केंद्रित करना चाहिए। किसी भी पीर फकीर के मुरीद ज़ोर-ज़ोर से उनकी जयजयकार करते हैं वो हमारे शरीर को एक ध्वनि में पिरोनेके लिए है।

कहीं दूर बात करने के लिए हमे जिस प्रकार फोन की बेल बजानी पड़ती है वैसे ही अपने सदगुरु में अपना ध्यान लगाने के लिए हमे हमे उसके नाम का हुंकारा भरना पड़ता है या घंटे बजाने पड़ते हैं। इसी विज्ञापन में वो कहते हैं की 'बेल बजाइए और उन्हें बताइये की आपको पता है'। भाव ये है की आपके गुरु को आपके नाम लेने भर से मालूम हो जाए की आप जाने हैं की वो कितना कारसाज़ है और आपको उस पर पूरा भरोसा है। तो अगर अगली बार आपको साईं की, अपने गुरु की याद आए तो हिचाकिये मत बस साईं राम के नाम का जाप कीजिये और अपने मन में स्थित उस बाबा की बेल बजाइए। जय साईं राम -अमित माथुर

1 comment:

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