Saturday, January 16, 2010

बाबा का न्यायालय: चिंचनिकर चावडी

"मशीद माई से कोई खाली हाथ नहीं लौटता" ये वचन जितने तब सत्य थे उतने बल्कि उससे कहीं ज्यादा आज सार्थक हैं। "मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताये" बाबा के साभी वचन आज भी बाबा की संतानों में जीवन के प्रति जोश पैदा कर रहे हैं और एक सतत आश्वासन हैं की बाबा से कुछ भी मांगो वो ज़रूर देते हैं.
लगभग 36,525 दिन पहले बाबा ने द्वारकामाई के अलावा एक और जगह को अपना ठिकाना बनाया था। बाबा ने फैसला किया किया की वो एक दिन छोड़कर पास ही में एक टूटी सी ईमारत में रात को विश्राम करेंगे. द्वारकामाई में तात्या और म्हाल्सपतिजी बाबा के साथ रात को चिंतन, मनन, ध्यान और थोडा सा विश्राम करते थे मगर चावडी में किसी को भी बाबा के साथ रुकने की आज्ञा नहीं थी. बाबा चावडी में ध्यान भी करते और अपने भक्तो के लिए मालिक से प्रार्थना भी करते. चावडी में बाबा को छोड़ने के बाद शिर्डी के किसी भी व्यक्ति ने बाबा की आवाज़ नहीं सुनी. बाबा चावडी में केवल ध्यान ही किया करते थे? बाबा का चावडी में सोने का क्या कारण था? चावडी में महिलाओं का प्रवेश वर्जित क्यूँ था? वैसे तो बाबा की लीला बाबा ही जानें मगर बाबा की ही कृपा और करुणा से हम बाबा की इस मनमोहक लीला को समझने का प्रयास करते हैं.
बाबा हर दुसरे दिन चावडी में रात बिताते थे. बाबा की दया से जहाँ तक मेरा विचार है वास्तव में चावडी बाबा का न्यायालय थी. द्वारकामाई में बाबा हर उस आने वाले की इच्छा पूरी करते थे जो उनसे कुछ मांगता था, तो बाबा ने ऐसा क्यूँ कहा की "अगर सभी बौर बन जाएँ तो फलो की गिनती करना ही असंभव हो जाएगा." यानि बाबा सबको देने का सामर्थ्य रखते हुए भी सुपात्र का विचार ज़रूर करते थे. द्वारकामाई में जब भक्तो को दे देते थे तब चावडी में बैठकर उस भक्त को अपनी दी हुयी भेंट के लिए सुपात्र बनाने का कार्य भी करते थे. एक वर्णन आता है जहाँ बाबा ने अपने एक भक्त की शराब की बुरी आदत छुडवाने के लिए उसे बहुत मारा था, वो मारना स्वप्न में ज़रूर था मगर उसका असर वास्तविक था.आज भी अगर हम बाबा से कुछ मांगते हैं तो हो सकता है हम अपनी मांगी हुयी चीज़ के लिए सुपात्र ना हों, लेकिन बाबा आज भी चावडी में बैठकर हमे, हमारी मांग के लिए हमे सुपात्र बनाते हैं. बाबा ने कहा है "श्रद्धा रखो और सब्र से काम लो". अगर बाबा ने हमे देना ही है तो सब्र किस बात का? वास्तव में बाबा ने सब्र करने को इसीलिए कहा है की वो चाहते हैं की हम बौर की तरह पूरी श्रद्धा और सब्र से इंतज़ार करें जिससे हमे हमारे कर्मो का स्वादिष्ट और सुगन्धित फल मिले. चावडी में बैठकर बाबा का न्यायालय पूरा न्याय करता है अगर दोष हम में है तो सजा भी हमे ही भुगतनी होगी और बाबा ने तो साफ़ बताया है की कई जन्मो में सजा पूरी करने से अच्छा है की हम इसी जन्म में बाबा की निगरानी में अपनी सजा पूरी करें और फिर स्वयं बाबा के चरणों में विलीन हो जाएँ.मेरे विचार से आप कितना इत्तेफाक रखते हैं ये तो मैं नहीं जानता मगर मुझे यकीन है आज भी चावडी में बाबा से अपने किये तमाम गुनाहों की माफ़ी मांग लेने से बाबा हमे मालिक से इन्साफ दिलाते हैं और हमे गलती करने से रोक भी लेते हैं. बाबा की चावडी में बाबा का दरबार भले ही ना लगता हो मगर फैसला तो बाबा चावडी में बैठकर ही सुनाते हैं. तो हम ये मान सकते हैं की मशीदमाई हमें कभी निराश नहीं करती. मशीदमाई का साईं हमें देता है मगर चावडी में बैठकर हमारी समीक्षा और समाधान करने के बाद देता है. श्रीसाईं के इस न्यायालय को फैसले देते सौ साल दिसंबर 2009 में पूरे हो जायेंगे और शायद ये सृष्टि का एकमात्र न्यायालय होगा जिसके फैसले कभी गलत नहीं होते. बाबा के इस न्यायालय को इस लौकिक जगत के सौ साल पूरे होने पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें. जय साईंराम.

1 comment:

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