'मेरे लिए भक्ति एक बहुत ही व्यक्तिगत विषय है.' स्वर्गीय श्री विनय भटनागर जी के ये शब्द सदा मेरे साथ रहेंगे. रविवार, 18 अप्रेल को श्री विनय भटनागर जी की जीवन ज्योत श्रीसाईं में विलीन हो गयी. श्रीसाईं की ज्योत साईं में समा गयी. पिछले करीब डेढ़ साल में मेरी भटनागर जी के साथ बाबा के विषय में बहुत बातें हुयीं. कितने आश्चर्य की बात है की सिर्फ 100 कदमो की दूरी पर हमारे घर थे मगर मेरी पहली मुलाक़ात हमारे ऑफिस में हुयी.
साल 2008 की गुरु पूर्णिमा का निमंत्रण लेकर मैं अपने ऑफिस के एक मित्र को बुलावा देने गया था. उन्होंने पूछा 'आप तो विनय जी जानते होगे ?' आज भी हैरानी होती है की मैंने उस वक़्त 'नहीं, कभी भेंट नहीं हुयी' कहा था. पिछले लगभग चार सालो से शालीमार गार्डन में हर रामनवमी पर निकलने वाली भव्य पालकी यात्रा में रथ पर बाबा के भक्तो को प्रसाद बांटने वाले और योगाश्रम शिव सूर्य साईं आदि मंदिर (शालीमार गार्डन पुलीस चौकी के पीछे) से जुड़े भटनागर जी को वहां बहुत कम लोग जानते थे. यहीं भटनागर जी की ये बात सही हो जाती है की 'भक्ति एक बहुत ही व्यक्तिगत' विषय है. शिर्डी जाने पर काकड़ आरती के समय समाधी मंदिर परिसर की परिक्रमा करना हो या साईं मंदिर में सुबह परिक्रमा करना हो, भटनागर जी की आराधना पूरी तरह व्यक्तिगत होती थी. मुझे याद अभी करीब दो महीने पहले वो मुझसे मिलने मेरी सीट पर आ रहे थे और 'ॐ साईं नमो नमः, श्रीसाईं नमो नमः, जय जय साईं नमो नमः, सतगुरु साईं नमो नमः' का जाप बुदबुदा रहे थे. मैं उनके पीछे ही था मगर मैंने उनकी आराधना में खलल डालना ठीक नहीं समझा. इसलिए जब हम मेरी सीट तक पहुँच गए तब मैंने उन्हें 'जय साईंराम सर' से संबोधित किया.
भटनागर जी ने बताया था की कैसे बाबा उनके घर आये और वो बाबा से जुड़े. 1977 की गर्मियों की बात है खुद भटनागर जी तो ऑफिस में थे मगर उनके पीछे उनके घर एक बुज़ुर्ग फकीर आया और उस फकीर ने भटनागर जी की धर्मपत्नी से कुछ मीठा लाने को कहा. घर में मीठा ना होने की स्थिति में उस फकीर ने कहा की मुझे शक्कर दे दो. शक्कर खाने के बाद फकीर ने श्रीमती भटनागर से पचास रूपए मांगे और बताया की वो लोधी रोड में रहते हैं. जब भटनागर जी घर पहुंचे तो उन्हें भी ये घटना बहुत अजीब लगी. उन्होंने विचार किया की हमे लोधी रोड पर उस फकीर की बतायी जगह जाना चाहिए और देखना चाहिए की वो कौन था. जब श्रीमति भटनागर और विनय जी वहां पहुंचे तो ये देखकर हैरान रह गए की वहां तो श्रीसाईं बाबा का मंदिर है. श्रीमती भटनागर ने भी बाबा को देखते ही पहचान लिया की यही थे जो हमारे घर आये थे. उसके बाद भटनागर जी बाबा के अनन्य भक्त बन गए. श्री भटनागर ने बताया था की उन्होंने शिर्डी में बाबा को खुद स्नान करवाया है और उनके दोनों बच्चे बाबा की पावन गोद में बैठ चुके हैं.
श्री विनय भटनागर की आस्था और विश्वास पूरी तरह से बाबा में था और रविवार वैशाख शुक्ल चतुर्थी संवत 2067 (18 अप्रैल 2010 ) को श्री विनय भटनागर जी की जीवन ज्योत श्रीसाईं की पावन ज्योत में विलीन हो गयी. मेरी श्रीसाईं से प्रार्थना है की श्रीविनय भटनागर जी को अपने चरणों में सदा-सदा के लिए विश्राम दें. जय साईराम...
Tuesday, April 20, 2010
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Amit Ji Mujhe bhi bada afsos hai ki Bhatnagar ji nahi rahen iswar unki atma ko shnatio de aur unki har ichha purn ho.
ReplyDeletewith rgds
Arun Tiwari
Dainik Jagran
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