
यहाँ सवाल ये है की क्या आप बता सकते हैं की आखिर इनमे से कौन बाबा को सच्चा प्यार करता है? दोनों ही तरफ के अपने तर्क हैं और अपनी भावनाए। वास्तव में बाबा दोनों ही के दिल में हैं. ना तो अमीर झूठा और ना ही गरीब फरेबी. कुछ साईं मंदिरों में बाबा का शयनकक्ष बनाया गया है जिसमे एअरकंडीशनर तक लगा है और कुछ आस्था के मंदिर ऐसे भी हैं जहाँ बाबा खुले आसमान के नीचे चौबीसों घंटे अपने प्यारे बच्चो के लिए विराजमान हैं. दुनिया में इतना विशाल और विलक्षण व्यक्तित्व श्रीसाईं के अलावा और शायद किसी का नहीं है. बाबा अपने सभी बच्चो को सामान नज़र से देखते हैं और उनका प्यार भी सभी के लिए एक जैसा है. बाबा को ना तो स्वर्ण आभूषनो से जड़े अलंकारों से प्रेम है और ना ही सूती कपडे पहनने में कोई घृणा. बाबा एक निर्विकार और निर्लिप्त पिता के सामान सभी को एक समझते हैं.
बाबा सिर्फ हमारी तरफ देखते हैं और हमारा उद्धार सिर्फ उस इक निगाह से हो जाता है। बाबा को देसी घी में बने हलुए और मिष्ठान भी उतनी ही तृप्ति देते हैं जितना सुख उन्हें खिचडी और भाकरी में मिलता है। अब आप ही बताओ बाबा को हम आखिर दें तो क्या दें? बाबा को सिर्फ हमारा प्यार और समर्पण चाहिए। बाबा को ऐसे भक्तो की भारी भीड़ चाहिए जो उनके दिखाए रास्ते पर चले और उनके दिव्य संदेशो को दुनिया के सभी दुखी और बेसहारा लोगो तक पहुंचाय। बाबा ने श्रीसाईं सत्चरित्र में अपना दिव्य रूप तो दिखाया ही है साथ ही बताया है की वो दियसलाइया इकट्ठी करने वाले एक दिव्य पुरुष हैं। मुझे तो बाबा ऐसे ही दिखाई देते हैं और मेरी बाबा से प्रार्थना है की हमेशा मेरे मन में वही दियासलाईया इकट्ठी करने वाले संत के रूप में विराजमान रहना जिससे मैं भी खुद को अंहकार से वशीभूत होता ना पाऊ। जय साईंराम।
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