Thursday, April 9, 2009

गुस्सा भी आता था श्रीसाईं को

"सभी भक्त रामजन्मोत्सव मनाने की तैयारियाँ करने लगे। कीर्तन प्रारम्भ हो गया था। कीर्तन समाप्त हुआ, तब "श्री राजाराम' की उच्च स्वर से जयजयकार हुई। कीर्तन के स्थान पर गुलाल की वर्षा की गई। जब हर कोई प्रसन्नता से झूम रहा था, तब अचानक ही एक गर्जती हुई ध्वनि उनके कानों पर पड़ी। वस्तुत: जिस समय गुलाल की वर्षा हो रही थी तो उसमें के कुछ कण अनायास ही बाबा की आँख में चले गये। तब बाबा एकदम क्रुद्ध होकर उच्च स्वर में अपशब्द कहने व कोसने लगे। यह दृश्य देखकर सब लोग भयभीत होकर सिटपिटाने लगे।"

"एक बार शामा को विषधर सर्प ने उसके हाथ की उँगली में डस लिया। शामा मस्जिद की ओर ही दौड़ा-अपने विठोबा श्री साईबाबा के पास। जब बाबा ने उन्हें दूर से आते देखा तो वे झिड़कने और गाली देने लगे। वे क्रोधित होकर बोले-""अरे ओ नादान कृतघ्न बम्मन ! ऊपर मत चढ़। सावधान, यदि ऐसा किया तो ।'' और फिर गर्जना करते हुए बोले, "" हट, दूर हट, नीचे उतर।''

"एक अवसर पर मौसीबाई बाबा का पेट बलपूर्वक मसल रही थीं, जिसे देख कर दर्शकगण व्यग्र होकर मौसीबाई से कहने लगे कि ""माँ! कृपा कर धीरे-धीरे ही पेट दबाओ। इस प्रकार मसलने से तो बाबा की अंतड़ियाँ और नाड़ियाँ ही टूट जाएँगी।'' वे इतना कह भी न पाए थे कि बाबा अपने आसन से तुरन्त उठ बैठे और अंगारे के समान लाल आँखें कर क्रोधित हो गए। साहस किसे था, जो उन्हें रोके? उन्होंने दोनों हाथों से सटके का एक छोर पकड़ नाभि में लगाया और दूसरा छोर जमीन पर रख उसे पेट से धक्का देने लगे। सटका (सोटा) लगभग 2 या 3 फुट लम्बा था। लोग शोकित एवं भयभीत हो उठे कि अब पेट फटने ही वाला है। बाबा अपने स्थान पर दृढ़ हो, उसके अत्यन्त समीप होते जा रहे थे और प्रतिक्षण पेट फटने की आशंका हो रही थी।"

"विजया दशमी के दिन जब लोग सन्ध्या के समय " सीमोल्लंघन' से लौट रहे थे तो बाबा सहसा ही क्रोधित हो गए। सिर पर का कपड़ा, कफनी और लँगोटी निकालकर उन्होंने उसके टुकड़े-टुकड़े करके जलती हुई धूनी में फेंक दिए। वे पूर्ण दिगम्बर खड़े थे और उनकी आँखें अंगारे के समान चमक रही थीं । उन्होंने आवेश में आकर उच्च स्वर में कहा कि "लोगो! यहाँ आओ, मुझे देखकर पूर्ण नि‚चय कर लो कि मैं हिन्दू हूँया मुसलमान।'' सभी भय से काँप रहे थे।"

श्रीसाईं सत्चरित्र में वर्णित उपरोक्त घटनाओं से स्पष्ट है हमारे परमशांत आत्मस्थित श्रीसाईं को बहुत क्रोध आता था. कभी-कभी तो ये क्रोध और बाबा के अपशब्द इतना बढ़ जाते थे की भक्तो को बाबा से संत स्वरुप होने पर संदेह होने लगता था. बाबा क्रोध में अपशब्द कहते और कभी-कभी तो आस-पास रखी वस्तुए उठाकर फेकने लगते थे. मगर आपने देखा होगा की माँ भी कभी-कभी क्रोध में बच्चे को मारती है मगर ये स्वभावगत होता है की माँ की इस मार का बच्चे को हमेशा लाभ ही होता है. बाबा की इन कथाओं से स्पष्ट है की बाबा भी भक्तो के विकारों और दुर्गुणों को दूर करने के लिए उन्हें अपशब्द कहते या दुत्कारते थे.

रामनवमी के अवसर पर बाबा का क्रोध करना स्वाभाविक था क्यंकि इस दिन बाबा भक्तो को दिखाना चाहते थे की उनके अन्दर बसे रावण का संहार करने के लिए ही बाबा यहाँ भक्तो के बीच में आये हैं और रामनवमी का अर्थ भी श्रीसाईं की शिक्षाओं में यही है की रामनवमी के दिन हम अपने मन में, अपने चरित्र में श्रीराम को स्थापित करें और अपने अन्दर के रावण से मुक्ति पायें.

दूसरी घटना शामा के लिए नहीं बल्कि विषधर सर्प के लिए कही गयी थी. साँप का ज़हर धीरे-धीरे शामा के अन्दर चढ़ रहा था और बाबा ने उसे ही लक्ष्य करके उसे नीचे उतरने का आदेश दिया था.

तीसरी घटना स्पष्ट करती है की बाबा का अपने भक्तो से अनन्य प्रेम और अनुराग था. बाबा चाहते थे की भक्त उनकी पूजा अपने मन के अनुसार करें, क्यूंकि जब मन बाबा से जुड़ जायेगा तो मोक्ष प्राप्ति में कोई अवरोध नहीं होगा.

चौथी घटना विशेष रूप से भक्तो को दो बात स्पष्ट करने के लिए थी. पहली तो ये की बाबा को उनके धर्म विशेष से संबोधित करना मूर्खता है और बाबा को ये बिलकुल पसंद नहीं था और दूसरे इस घटना के ठीक एक वर्ष बाद बाबा ने अपनी पावन देह त्याग दी और सदा के लिए भक्तो के ह्रदय में बस गए.

हमारे लिए इन घटनाओं का विशेष महत्त्व ये है की यदि हम बाबा की शिक्षाओं के अनुकूल नहीं रहे तो बाबा एक बार फिर क्रोधित होकर हमे अपना रौद्र रूप दिखा सकते हैं. मेरी तो बाबा से प्रार्थना है की बाबा चाहे दंड देने में लिए ही सही कम से कम हमें एक बार दर्शन तो दो. जय साईं राम.

2 comments:

  1. Om Sai Ram ! vry well written sir ! apne baba ke krodh ka varnan kitni sahi tarah se kiya hai ,jyadatar logo ke man me aisi ghatna se dout ho jata hai , jise apne kafi achche se clerify kiya hai ! baba ki kripa sada aap pr bni rhe !

    Pushpa Lata

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