
ॐ साईराम, बाबा के बारे में जितना पढो उतना बाबा का विलक्षण व्यक्तित्व सामने आने लगता है. अभी-अभी बाबा की एक लीला पढ़ी की कैसे बाबा ने द्वारकामाई के जीर्णोद्दार में विघ्न डालने और काम को रोकने का प्रयास किया था. पहले में वही वर्णन आपको सुनाता हूँ.
श्री बाबा द्वारकामाई के जीर्णोद्दार के हमेशा विरोध में थे. भक्त मंडली ने द्वारकामाई के सामने मंडप बनाने का निश्चय किया क्यूंकि आरती के समय और अन्य प्रसंगों में भक्तो को धुप, बरसात, का कष्ट झेलना पड़ता था. इसलिए भक्तो ने बाबा से आज्ञा देने की विनती की. बाबा ने उसे मान्यता नहीं दी. कैलाशवासी तत्याजी पाटिल ने इस काम की जिम्मेदारी ली. पूरी तय्यारी कर ली गयी. बाबा जब लेंडी बाग़ गए तब सभा मंडप में लोहे का खम्भा (गर्डर) खडा कर दिया गया. वापिस आने पर उसे देखकर बाबा क्रोधित हो गए और बोले "मेरे द्वार के सामने रेलगाडी का पोल किसने खडा किया? दुसरे दिन भी जब बाबा लेंडी बाग़ से गए तब दुसरे खंभे को खडा करने का काम शुरू किया गया. इतने में बाबा वापिस आ गए और रुद्रावतार धारण कर लिया. उनकी क्रोधाग्नि से द्वारकामाई में उपस्थित भक्तजनों का समूह ही नहीं बल्कि निर्जीव वस्तुए भी थर-थर काँपने लगी. बाबा का ऐसा डरावना रूप देखकर कामगार मजदूर भागने लगे. बाबा खंभे के पास आकर जैसे ही खड़े हुए, तात्या पाटिल दोड़कर आगे आये और दोनों बाज़ुओ से बाबा को कास कर पकड़ लिया. उन्होंने ऊंची और रोबदार आवाज़ में मजदूरों को काम जारी रखने का हुक्म दिया. मजदूर तेजी से काम करने लगे. यह दृश्य देखकर बाबा के सर्वांग में ज्वालायें बहार आने लगी. तात्या जी ने फिर भी उन्हें नहीं छोडा. काम पूरा हो होने पर ही वे बाबा से दूर हुए. गुस्से में बाबा ने तात्या के सिर का ज़री का फेटा और ज़री का उत्तरिये खींच लिया और माचिस द्वारा उसमे आग लगा दी व यह सब एक गड्ढे में फेंक दिया. उस पर तात्या पाटिल भी गुस्से से बोले "क्या इसके बाद मैं हमेशा नंगे सिर ही रहूँगा?" पाटिल के ये शब्द सुनकर बाबा बर्फ की तरह ठंडे पड़ गए. उनका इतना ज़बरदस्त गुस्सा कहाँ गया ये तो वे ही जाने. उन्होंने बड़े प्यार से तात्या पाटिल को का हाथ पकड़ लिया. तुंरत ही उन्होंने गाँव से उत्तम ज़री का फेंटा और उत्तरीय मँगवाया. फिर जैसे छोटे बच्चे को समझाते हैं, ठीक उसी प्रकार पाटिल को समझाकर फेंटा बाँधने का आग्रह करने लगे. इतना होते ही द्वारकामाई के सामने आँगन में हजारो लोग एकत्र हो गए. हर कोई पाटिल से आग्रह करने लगा की इस बार तुम बाबा का कहना मान ही लो. तात्या पाटिल बहुत जिम्मेदार व्यक्ति थे. उन्होंने देखा की यही समय है जब सभा मंडप बाँधने (निर्माण) की अनुमति मिल सकती है. बाबा का भी अनुमति दे दी. उसके बाद पाटिल का फेंटा बाँध लिया और बाबा को नमस्कार किया.
बाबा का मस्जिद माई के जीर्णोद्दार के काम का विरोध करना उनके भविष्य की घटनाओं का ज्ञात होना बताता है. आज आप सभी जानते हैं की बाबा के भव्य और विशाल मंदिरों और भवनों का निर्माण हो रहा है. लाखो रूपए और कई सौ दिनों की मेहनत के बाद बाबा के अद्वितीय विशाल मंदिरों का निर्माण किया जाता है. बाबा के मंदिरों को खूबसूरत और भक्तो के लिए आरामदेह बनाने में ही हजारो रूपए लगा दिए जाते हैं. बाबा का शयनकक्ष एयरकंडीशंड होता है और कहीं-कहीं तो पूरा मंदिर भी एयरकंडीशंड होता है. मंदिरों में भक्तो की सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे और लंगर के लिए विशाल हाल का निर्माण कराया जाता है. इतना सब होने पर भी अगर मंदिर में बाबा का चांदी का सिंहासन ना हो तो दानी भक्तो को बहुत बुरा सा लगता है. इतनी व्यवस्था होने के बाद दर्शनों के लिए वीआइपी और वीवीआइपी व्यवस्था होना लाज़मी सी बात है. आखिर लाखो रूपए मंदिर निर्माण में देने वाले शुद्ध ह्रदय साईं भक्त, साधारण से साईं आश्रित आम लोगो के साथ पंक्ति में खड़े होकर दर्शन तो नहीं करेंगे ना.
बहुत साल पहले द्वारकामाई के जीर्णोद्दार का विरोध करके बाबा ने साईं संगत को ये सन्देश दिया था की ना तो बाबा को भव्य भवन चाहिए और ना ही उनके भक्तो को विशाल देवालयों का निर्माण करने की कोई ज़रुरत है. बाबा ने तात्या पाटिल के ज़री के कीमती फेंटे को जलाकर संकेत दिया था की अपने मस्तिष्क में 'मंदिर निर्माता' बनकर कोई अंहकार मत पालो. बाबा ने उस ज़री के फेंटे को जला दिया और बताया की अपने अन्दर अंहकार को ऐसे ही जलाकर फेंक दो. तात्या ने पूछा "क्या इसके बाद में हमेशा नंगे सिर ही रहूँगा?" ये प्रश्न एक निश्छल और निर्मल ह्रदय भक्त का है की "क्या बाबा के आश्रय में रहकर भी मेरा स्वाभिमान समाप्त हो जाएगा?" इस पर बाबा ने तुंरत अंहकार और आडम्बर से मुक्त फेंटा मंगवाकर तात्या के सिर पर बाँधा और सभी साईं संतानों को आश्वासन दिया की बाबा द्वारा दिया गया सम्मान ही हमारे नंगे सिर पर शोभायमान होगा.
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