"ओ नाना! जिसमे प्याज हज़म करने की शक्ति हो, उसे ही खानी चाहिए, अन्य को नहीं" श्रीसाईं सत्चरित्र के अध्याय २३ में श्री गोविन्द रघुनाथ दाभोलकर जी बाबा के उपरोक्त वचन के साथ ही स्पष्ट कर दिया है की प्याज और बाबा का क्या सम्बन्ध रहा होगा।
वास्तव में श्रीसाई से जुड़ने के बाद पहला विचार मन में यही आता है की भोजन में किस प्रकार की चीजे खाई जाए और कौन से नहीं। बाबा से जुड़ने के बाद सबसे पहले भगतजन मांसाहार त्याग देते हैं। मांस खाना चाहिए इसकी वकालत और समर्थन मैं कहीं भी नहीं कर रहा हूँ। बस विचार ये है की खाने-पीने के सम्बन्ध में बाबा का क्या कहना है। एक योगाभ्यासी जो नाना साहेब चांदोरकर के साथ शिर्डी आया था समाधि में ध्यान नहीं लगा पा रहा था। बाबा को प्याज और रोटी खाते हुए उसने देखा तो उसके मन में विचार आया की प्याज और रोटी खाने वाला ये इंसान मुझे क्या देगा? इसी पर बाबा ने नाना साहेब चांदोरकर से कहा की "प्याज उसी को खानी चाहिए जो उसे हज़म कर सके"।
प्याज को वैदिक धर्म में ना खाए जाने योग्य भोज्य पदार्थ बताया गया है। प्याज और लहसुन में गंध के कारण शायद ऐसा किया गया है। बाबा ने प्याज के सम्बन्ध में दूसरा उपदेश तब दिया था जब कुशा भाऊ जो विख्यात और शक्तिशाली तंत्रज्ञ थे बाबा के साथ बैठे थे। वो एकादशी का दिन था और बाबा ने सामने पड़ी प्याज, कुशा भाऊ से खाने को कहा। कुशा भाऊ, जो बाबा के चरणों में आकर तंत्र-मन्त्र आदि सारे वाम मार्गी शक्तिया छोड़ चुके थे, बाबा के कहने मात्र पर प्याज खाने को तैयार हो गए. एक ब्रह्मण के लिए एकादशी के दिन प्याज खाने जैसा पाप 'घोर पाप' की संज्ञा में आता है. कुशा भाऊ ने कहा बाबा मैं तो तब प्याज खाऊँगा जब तुम भी प्याज खाओगे. बाबा ने भी वहां रखी प्याज खाई और कुशा भाऊ ने भी. तब बाबा अचानक ज़ोर से चिल्ला कर बोले "अरे देखो ये बामन एकादशी के दिन प्याज खा रहा है." कुशा भाऊ ने कहा "बाबा प्याज तो आपने भी खाई है." तब बाबा मज़ाक करते हुए बोले "नहीं मैंने तो शकरकंदी खाई है" इस पर कुशा भाऊ ने कहा "नहीं आपने अभी प्याज खाई है". तब बाबा ने फौरन उलटी कर दी और प्याज की जगह शकरकंदी बाहर आई. कुशा भाऊ ने बिना देर किए वो सारी शकरकन्दी खा ली इस पर बाबा ने कहा "अरे अरे ये क्या कर रहा है, मेरी उल्टी क्यूँ खा रहा है?" इस पर कुशा भाऊ ने कहा "बाबा यही तो तुम्हारा असली प्रसाद है". कुशा भाऊ की इस लगन और श्रद्धा के प्रतिफल में बाबा ने उन्हें आशीर्वाद दिया की वो जहाँ भी बाबा ध्यान करके अपनी मुट्ठी बंद करेंगे 'धूनी' की गर्म-गर्म ऊदी उनके हाथ में आ जायेगी और उस से वो लोगो का भला कर सकेंगे. ये कथा श्रीसाईं सत्चरित्र में वर्णित है।
बाबा ने प्याज खाकर यही बताया है की हमे अपनी इन्द्रियों पर इतना नियंत्रण होना चाहिए की खाने-पीने या आस पास के माहोल का हमारे चरित्र पर असर ना पड़े. ये बड़ी विलक्षण बात है की दुनिया के इतिहास का सबसे बड़ा दुष्ट माना जाने वाला व्यक्ति हिटलर शाकाहारी था. यहाँ मैं फिर बता दूँ की मेरा मकसद ये कतई नहीं है की हमे मांसाहार करना चाहिए. मेरा निवेदन सिर्फ़ ये है की बाबा और प्याज के रिश्ते को समझकर हम बाबा से प्रार्थना करें की वो हमे भी इतनी शक्ति दें की हम प्याज रुपी बुरी भावनाओं और अनाचारी मस्तिष्क को हज़म कर लें अर्थात हमारे चरित्र पर बाहरी दुःशक्तियों का प्रभाव ना हो और प्याज रुपी ये गन्दगी, शकरकंदी के समान स्वादिष्ट भावना में बदल जाए. जय साईं राम -आपका मुकुल नाग, 'साईबाबा' शूटिंग स्टूडियो, वडोदरा, गुजरात.
Saturday, January 31, 2009
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मुकुल भाई इतेफाक से आज आपका ब्लॉग देखने को मिला सबसे पहले आपको साईं राम .. फ़िर आपसे मुलाक़ात होती रहेगी .. समय मिले तो मेरे ब्लॉग की सैर करे हमारे यहाँ के साईं बाबा की कुछ तस्वीरें है ..काफी अच्छी है ..चाहे तो आप उसे रख सकते है
ReplyDeletenai jaanakaari mili.abhaar
ReplyDeleteSwagat hai...aapsbhee kuchh jaan neko milaa...bohot, bohot shubhkamanaayen!
ReplyDeleteब्लाग जगत में आपका स्वागत है।
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएं.......
म श्री एडम्स केविन, Aiico बीमा ऋण ऋण कम्पनी को एक प्रतिनिधि हुँ तपाईं व्यापार को लागि व्यक्तिगत ऋण चाहिन्छ? तुरुन्तै आफ्नो ऋण स्थानान्तरण दस्तावेज संग अगाडी बढन adams.credi@gmail.com: हामी तपाईं रुचि हो भने यो इमेल मा हामीलाई सम्पर्क, 3% ब्याज दर मा ऋण दिन
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